Bonjour friends! Anagha here. As we had the session on Amitabh Bachchan the other day, I would like it if you'll read this poem, which he has written himself, as a tribute to the Delhi gang rape victim, Damini. It reflects the deep thought that he has given regarding the incident not only from the outside but also from her point of view. It is a very moving poem and one can see that he has certainly inherited the art of writing poems from his poet father, Harivanshrai Bachchan... It goes like this...
माँ बहुत दर्द सहकर ... बहुत दर्द देकर
तुझसे कुछ कहकर, मैं जा रही हूँ ....
आज मेरी बिदाई में जब सखियाँ मिलने आएँगी
सफेद जोड़े में लिपटी देख, सिसक-सिसक मर जाएँगी
माँ तू भैया को रोने न देना
मैं साथ हूँ हर पल , उनसे कह देना
माँ पापा भी छुप-छुप के बहुत रोएँगे
मैं कुछ ना कर पाया , ये कहकर खुदको कोसेंगे
माँ दर्द उन्हें ये होने न देना
इलज़ाम कोई लेने न देना
वो अभिमान हैं मेरा , सम्मान हैं मेरा
तू उनसे इतना कह देना ....
माँ तेरे लिए अब क्या कहूँ
दर्द को तेरे, शब्दों में कैसे बाँधू
फिर से जीने का मौका कैसे माँगू
माँ लोग तुझे सताएँगे
मुझे आज़ादी देने का , तुझपर इलज़ाम लगाएँगे
माँ सब सह लेना , पर ये ना कहना
'अगले जनम मोहे बिटिया न देना’
-Amitabh Bachchan
Short of words to express the feelings after reading this poem.Thank you Anagha for sharing.
ReplyDeleteकविता वाचून डोळ्ल्यात पाणी आले ,कौस्तुभ ,अनघा धन्यवाद
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